प्रशांत पंड्या का फिला जगत

डाक टिकट संग्रह के सर्व प्रथम हिन्दी ब्लॉग में आपका स्वागत है | इस माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय भाषा में डाक टिकट संग्रह के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने का यह एक प्रयास है |


सुंदर और उपयोगी वस्तुओं का संग्रह मानवका स्वभाव है। हर चीज को संग्रह करने में मज़ा है और हर एक चीज के संग्रह के साथ कुछ न कुछ ज्ञान प्राप्त होता है लेकिन डाक टिकटों के संग्रह का मज़ा कुछ और ही है। हर डाक टिकट किसी न किसी विषय की जानकारी देता है, उसके पीछे कोई न कोई जानकारी ज़रूर छुपी होती है। अगर हम इस छुपी हुई कहानी को खोज सकें तो यह हमारी सामने ज्ञान की रहस्यमय दुनिया का नया पन्ना खोल देता है। इसीलिए तो डाक टिकटों का संग्रह विश्व के सबसे लोकप्रिय शौक में से एक है। डाक-टिकटों का संग्रह हमें स्वाभाविक रूप से सीखने कोप्रेरित करता है इसलिए इसे प्राकृतिक शिक्षा-उपकरण कहा जाता है। इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान हमें मनोरंजन केमाध्यम से मिलता है इसलिए इन्हें शिक्षा का मनोरंजक साधन भी माना गया है। डाक-टिकट किसी भी देश कीविरासत की चित्रमय कहानी हैं। डाक टिकटों का एक संग्रह विश्वकोश की तरह है, जिसके द्वारा हम अनेक देशों केइतिहास, भूगोल, संस्कृति, ऐतिहासिक घटनाएँ, भाषाएँ, मुद्राएँ, पशु-पक्षी, वनस्पतियों और लोगों की जीवन शैली एवं देश के महानुभावों के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते है।


डाक-टिकट का इतिहास करीब १६९ साल पुराना है। विश्व का पहला डाकटिकट १ मई १८४० को ग्रेट ब्रिटेन में जारी किया गया था जिसके ऊपर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का चित्र छपा था। एक पेनी मूल्य के इस टिकट के किनारे सीधे थे यानी टिकटों को अलग करने के लिए जो छोटे छोटे छेद बनाए जाते हैं वे प्राचीन डाक टिकटों में नहीं थे। इस समय तक उनमें लिफ़ाफ़े पर चिपकाने के लिए गोंद भी नहीं लगा होता था। इसके उपयोग का प्रारंभ ६ मई १८४० से हुआ। टिकट संग्रह करने में रुचि रखने वालों के लिए इस टिकट का बहुत महत्व है, क्योंकि इस टिकट सेही डाक-टिकट संग्रह का इतिहास भी शुरू होता है ।

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भारत में पहला डाक टिकट १ जुलाई १८५२ में सिंध प्रांत में जारी किया गया जो केवल सिंध प्रांत में उपयोग के लिए सिमित था । आधे आने मूल्य के इस टिकट को भूरे कागज़ पर लाख की लाल सील चिपका कर जारी किया गया था । यह टिकट बहुत सफल नहीं रहा क्योंकि लाख टूट कर झड़ जाने के कारण इसको संभाल कर रखना संभव नहीं था । फिर भी ऐसा अनुमान किया जाता है कि इस टिकट की लगभग १०० प्रतियाँ विभिन्न संग्रहकर्ताओं के पास सुरक्षीत है । डाक टिकटों के इतिहास में इस टिकट को सिंध डाक (Scinde Dawk) के नाम से जाना जाता है । बाद में सफ़ेद और नीले रंग के इसी प्रकार के दो टिकट वोव कागज (Wove Paper) पर जारी किए गए लेकिन इनका प्रयोग बहुत कम दिनों रहा क्योंकि ३० सितंबर १८५४ को सिंध प्रांत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार होने के बाद इन्हें बंद कर दिया गया । ये एशिया के पहले डाक टिकट तो थे ही, विश्व के पहले गोलाकार टिकट भी थे । संग्रहकर्ता इस प्रकार के टिकटों को महत्वपूर्ण समझते हैं और आधे आने मूल्य के इन टिकटों को आज सबसे बहुमूल्य टिकटों में गिनते हैं ।


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बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत के सबसे पहले डाक टिकट आधा आना, एक आना, दो आना और चार आना के चार मूल्यों में अक्टूबर १८५४ में जारी किये गए । यह डाक टिकटों को लिथोग्राफी पद्धति द्वारा मुद्रित किया गया । नीचे दिखायी गयी तस्वीर लिथोग्राफ मशीन की है ।


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समय के साथ जैसे जैसे टिकटों का प्रचलन बढ़ा, १८६० से १८८० के बीच बच्चों और किशोरों में टिकट संग्रह काशौक पनप ने लगा । दूसरी ओर अनेक वयस्क लोगों ने इनके प्रति गंभीर दृष्टिकोण अपनाया । टिकटों को जमाकरना शुरू किया, उन्हें संरक्षित किया, उनके रेकार्ड रखे और उन पर शोध आलेख प्रकाशित किए । जल्दी ही इनसंरक्षित टिकटों का मूल्य बढ़ गया क्योंकि इनमें से कुछ तो ऐतिहासिक विरासत बन गए थे । ये अनुपलब्ध हुएऔर बहुमूल्य बन गए । ग्रेट ब्रिटेन के बाद अन्य कई देशो द्वारा डाक टिकट जारी किये गए ।


germanpostagestampday १९२० तक यह टिकट संग्रह का शौक आम जनता तक पहुँचने लगा । उनको अनुपलब्ध तथा बहुमूल्य टिकटों की जानकारी होने लगी और लोग टिकट संभालकर रखने लगे । नया टिकट जारी होता तो लोग डाकघर पर उसे खरीदने के लिए भीड़ लगाते । लगभग ५० वर्षों तक इस शौक का ऐसा नशा जारी रहा कि उस समय का शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसने जीवन में किसी न किसी समय यह शौक न अपनाया हो । इसी समय टिकट संग्रह के शौक पर आधारित टिकट भी जारी किए गए । ऊपर जर्मनी के टिकट में टिकटों के शौकीन एक व्यक्ति को टिकट पर अंकित बारीक अक्षर आवर्धक लेंस (मैग्नीफाइंग ग्लास) की सहायता से पढ़ते हुए दिखाया गया है । आवर्धक लेंस टिकट संग्रहकर्ताओं का एक महत्वपूर्ण उपकरण है । यही कारण है कि अनेक डाक टिकटों के संग्रह से संबंधित डाक टिकटों में इसे दिखाया जाता है । नीचे दिखाये गये हरे रंग के ८ सेंट के टिकट को अमेरिका के डाक टिकटों की १२५वीं वर्षगाँठ के अवसर पर १९७२ में जारी किया गया था ।

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ऊपर एक रुपये मूल्य का भारतीय टिकट, यूएस ८ सेंट का टिकट तथा बांग्लादेश के लाल रंग के तिकोने टिकटों का एक जोड़ा टिकट संग्रह के शौक पर आधारित महत्वपूर्ण टिकटों में से हैं । ऊपर प्रदर्शित १ रुपये मूल्य के डाक टिकट को १९७० में भारत की राष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी के अवसर पर जारी किया गया था । इसी प्रकार बांग्लादेश के तिकोने टिकटों का जोड़ा १९८४ में पहली बांग्लादेश डाक टिकट प्रदर्शनी के अवसर पर जारी किया गया था । कभी कभी डाक टिकटों के साथ कुछ मनोरंजक बातें भी जुड़ी होती हैं । उदाहरण के लिए ऊपर के दो टिकटों में से पहले यू एस के टिकट में यू एस का ही एक और टिकट तथा भारत के टिकट में भारत का ही एक और टिकट प्रदर्शित किया गया है । जब की नीचे की ओर यू एस के टिकट में दिखाए गए दोनों टिकट स्वीडन के है । इस प्रकार के मनोरंजक तथ्य डाक टिकटों के संग्रह को और भी मनोरंजक बनाते हैं

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१९४० - ५० तक डाक टिकटों के शौक ने देश विदेश के लोगों को मिलाना शुरू कर दियाथा । डाक टिकट इकट्ठा करने के लिए लोग पत्र मित्र बनाते थे, अपने देश के डाकटिकटों को दुसरे देश के मित्र को भेजते थे और दुसरे देश के डाक टिकट मंगवाना पसंद करते थे । पत्र मित्रता के इस शौक से डाक टिकटों का आदान प्रदान तो होता ही था लोग विभिन्न देशोंक के विषय में ऐसी अनेक बातें भी जानते थे जो किताबों में नहीं लिखी होती है । उस समय टीवी और आवागमन केसाधन आम न होने के कारण देश विदेश की जानकारी का ये बहुत ही रोचक साधन बने । पत्र पत्रिकाओं में टिकट से संबंधित स्तंभ होते थे और इनके विषय में बहुतसी जानकारियों को जन सामान्य तक पहुँचाया जाता था । पत्र मित्रों केपतों की लंबी सूचियाँ भी उस समय की पत्रिकाओं में प्रकाशित की जाती थी ।

धीरे धीरे डाक टिकटों के संग्रह की विभिन्न शैलीयों का भी जन्म हुआ लोग इसे अपनी जीवन शैली, परिस्थितियों और रुचि के अनुसार अनुकूलित करने लगे इस परंपरा के अनुसार कुछ लोग एक देश या महाद्वीप के डाक टिकट संग्रह करने लगे तो कुछ एक विषय से संबंधित डाक टिकट आज अनेक लोग इस प्रकार की शैलीयों का अनुकरण करते हुए और अपनी अपनी पसंद के किसी विशेष विषय के डाक टिकटों का संग्रह करके आनंद उठाते है विषयों से संबंधित डाक टिकटों के संग्रह में अधिकांश लोग पशु, पक्षी, फल, फूल, तितलियां, खेलकूद, महात्मा गाँधी, महानुभवों, पुल, इमारतें आदि विषयों और दुनिया भर की घटनाओं के रंगीन और सुंदर चित्रों से सजे डाक टिकटों को एकत्रित करना पसंद करते है

विषय में गहरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उस विषय के डाक टिकटों का संग्रह करना एक रोचक अनुभव हो सकता है । डाक टिकट संग्रह के शौक के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हर उम्र के लोगों को मनोरंजन प्रदान करता है । बचपन में ज्ञान एवं मनोरंजन, वयस्कों में आनंद और तनाव मुक्ति तथा बड़ी उम्र में दिमाग को सक्रियता प्रदान करने वाला इससे रोचक कोई शौक नही । इस तरह सभी पीढ़ियों के लिये डाक टिकटों का संग्रह एक प्रेरक और लाभप्रद अभिरुचि है । दोस्तों, क्यों न आप भी डाक टिकट के संग्रह के इस अनोखे शौक की शुरूआत करें जो आपको हर उम्र में क्रियाशील और गतिशील रखे ।

क्या आप जानते हैं कि निजी फोटो
प्रकाशित करवा कर अपने व्यक्तिगत या निजी डाक टिकट (Personalized Postage Stamps) बनवाये जा सकते हैं ? हालाँकि यह सुविधा हर देश में नहीं है पर फिलहाल ऑस्ट्रिया (Austria), आलैंड द्वीप (Aland), ऑस्ट्रेलिया (Australia), कनाडा (Canada), फ्रांस (France), जर्मनी (Germany), मलेशिया (Malaysia), माल्टा (Malta), हॉलैंड (Netherlands), न्यूज़ीलैंड (New Zealand), सिंगापुर (Singapore), इंग्लैंड (UK), यूक्रेन (Ukaraine) अमेरिका (USA) जैसे देशों में व्यक्तिगत या निजी डाक टिकट बनवाए जा सकते हैं। अमेरिका में स्टेंप्स.कोम और जैजल.कॉम द्वारा इस प्रकार के डाक टिकट उपलब्ध कराए जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने भी व्यक्तिगत डाक टिकट उपलब्ध करवाए है ।



पिछले साल दैनिकों में हॉलैंड या नीदरलैंड सरकार द्वारा लोकप्रिय भोजपुरी गायक और अभिनेता मनोज तिवारी कोसम्मानित करने के लिए एक डाक टिकट (Postage Stamp) जारी किये जाने के समाचार प्रकाशित हुए थे लेकिनवे डाकटिकट व्यक्तिगत या निजी डाक टिकट ही थे। कुछ समय पहले इसी प्रकार के समाचार इंटरनेट के माध्यम सेपढने को मिले जिसमें बताया गया था की टी ऐन टी पोस्ट (TNT Post) हॉलैंड (Netherlands) के डाक विभागद्वारा आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के सम्मान में चार डाक टिकट जारी किए गए लेकीन वे भी व्यक्तिगत डाक टिकट ही थे ।

वर्तमान युग में पत्र लेखन की आदत बिलकुल ही कम होने की वजह से कई देशों के डाक विभाग द्वारा विशेष रूप से डाक सेवा को लोकप्रिय बनाने के लिए यह तरीका अपनाया जा रहा है । व्यक्तिगत या निजी टिकट सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया (Australia) पोस्ट द्वारा 1999 में प्रस्तुत किए गए थे उसके बाद दुनिया के कई देशों के डाक विभाग द्वारा व्यक्तिगत डाक टिकट जारी किए जा रहे हैं । व्यक्तिगत या निजी डाक टिकट ऐसे डाक टिकट है जो कोई भी व्यक्ति निजी अभिव्यक्ति के लिये किसी भी प्रकार की तस्वीर के साथ ऑर्डर (Order) देकर उसकी क़ीमत चुका कर बनवा सकता है । व्यक्तिगत रूप से डाकघर पर जाकर तस्वीर निकलवा कर या इंटरनेट के माध्यम से अपने पसंद की तस्वीर ऑनलाइन अप लोड कर के ऑर्डर (Order) दिया जा सकता है । निजी टिकट जोड़ियाँ डाक टिकटों (Setenant Stamps) की तरह दो भागों से बनी होती हैं । एक हिस्से के डाक टिकट में मूल्य, देश आदि के नाम शामिल होते है और अन्य आधा हिस्सा जोसुरक्षा प्रिंटर द्वारा रिक्त छोड़ दिया जाता है उसमें खरीदार द्वारा वांछित रूप की तस्वीर एवं उसका विवरण होता है। बाद में ये दोनों मिलकर एक डाक टिकट का रूप ले लेते है।


सिंगापुर में इसी प्रकार से बनवाए गए मेरे दो मित्रों के व्यक्तिगत या निजी डाक टिकट यहाँ हैं। उपर अहमदाबाद के कौशल पारीख के चित्र पर आधारित डाक टिकटें है जो उन्होंने सिंगापुर यात्रा के दौरान बनवाये थे । इसके निचेकौशल पारिख के निजी डाक टिकटों वाला पंजिकृत लिफाफा (Registered Envelope) है जो सिंगापुर से कौशल पारिख द्वारा हमारे फ़िलाटेलिस्ट मित्र श्रीकांत पारिख को भेजा गया है । मेरे एक अन्य फ़िलाटेलिस्ट मित्र वराद ढाकी के चित्र पर आधारित सिंगापुर के डाक टिकट भी नीचे दिखाये है।




इस प्रकार के डाक टिकट डाकखाने में चित्र खींचकर तुरंत तैयार किये जाते हैं इसलिए अक्सर इसकी छपाई में कभी कभी वह सफ़ाई नहीं दिखाई देती जो डाक विभाग द्वारा जारी किए गए डाक टिकटों में दिखाई देती है ।

भारतीय डाक विभाग द्वारा व्यक्तिगत डाक टिकटें अज्ञात समस्याओं की वजह से आधिकारिक तौर पर नही जारी किये गये हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल डाक परिमंडल (West Bengal Postal Circle) ने दिसंबर 2001 में व्यक्तिगत डाक टिकटों का एक प्रयोग किया था | 21 से 31 दिसम्बर 2001 को कोलकाता में आयोजित पंद्रहवें भारत औद्योगिक मेले (15th Industrial India Trade Fair) के दौरान भारतीय संस्करण के व्यक्तिगत डाक टिकट जारी किये गये थे । दाहिने ओर भारत का सर्वप्रथम व्यक्तिगत डाक टिकट और विशेष रद्दिकरण (Special Cancellation) दिखाये गये है। नीचे दिखाया गया लिफ़ाफा हमारी फ़िलाटेलिस्ट मित्र श्रीमती जीवन ज्योति को श्री दीपक डे द्वारा भेजा गया है जो शायद भारत का पहला लिफाफा होगा जिसके उपर व्यक्तिगत डाक टिकट का उपयोग किया गया है ।






इस भारतीय संस्करण के व्यक्तिगत डाक टिकट में कोरे १/४ आकार के कागज (¼ size blank paper sheet) को चार गुणा चार की पंक्तियों (4 x 4 row) में डाक टिकट के आकार के छिद्रण के साथ तैयार रखा गया था। खरीदार की तस्वीर एक पंक्ति में छपी जाती थी और अगली पंक्ति को खाली रखा जाता था। खाली स्थान में पंचतंत्र (Panchatantra) के विषयों पर जारी किए गए भारतीय डाक टिकट को चिपकाया जाता था। इस तरह बना था व्यक्तिगत डाक टिकटों का प्रथम भारतीय संस्करण। इस प्रयोग में जो काग़ज़ का इस्तेमाल किया गया था वह गोंद के बिना का काग़ज़ था और इसके किनारों पर बनाए गए छेद बहुत साफ़ नहीं थे। (ungummed glazed paper, with crude perforation)

कोलकाता में ही 31 जनवरी से 10 फरवरी 2002 तक आयोजित सत्ताइसवें कोलकाता पुस्तक मेले (27th Calcutta Book Fair) के समय दूसरा प्रयोग किया गया। इस बार कोलकाता सुरक्षा प्रेस, कोलकाता से गोंद वाले सुरक्षा कागज की व्यवस्था की गई थी। कोलकाता में व्यक्तिगत डाक टिकट की लोकप्रियता को देख कर, अक्तूबरमें गुजरात डाक परिमंडल ने "GPA – 2002” नामक "एक फ़्रेम डाक टिकट प्रदर्शनी" के समय व्यक्तिगत डाक टिकट जारी करने के लिए सहमति दी थी लेकिन कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण कुछ प्रयोगों के बाद व्यक्तिगत डाक टिकट जारी नहीं किये जा सके।

व्यक्तिगत टिकटों के पहले दो प्रयोग लोकप्रिय होने की वजह से कोलकाता में 21 से 31 दिसम्बर 2002 को आयोजित सोलाहवें भारतीय औद्योगिक मेले के दौरान व्यक्तिगत डाक टिकट जारी किये गये । इसबार कोलकाता सुरक्षा प्रेस, कोलकाता के द्वारा आपूर्ति कीये गये अण्डाकार छेद वाले सुरक्षा कागज का इस्तेमाल किया गया था ।


चौथी बार कोलकाता में ही 29 जनवरी से 9 फ़रवरी 2003 कोलकाता मैदान में आयोजित अठाईसवें पुस्तक मेले के दौरान व्यक्तिगत टिकट जारी किए गए थे। इस प्रकार भारत में चार बार प्रयोगात्मक रूप से व्यक्तिगत टिकट जारी किए गए हैं । ऊपर भारत के चौथे निजी डाक टिकट पर हमारे फ़िलाटेलिस्ट मित्र श्री अशोककुमार बायेंवाला कि तसवीर दिखाई गयी है ।


शायद आने वाले दिनों में भारतीय डाक विभाग द्वारा आधिकारिक तौर पर हर एक डाक घर में व्यक्तिगत डाक टिकटों की सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी और हम डाक घर में जा कर अपनी स्वयं की तस्वीर खिंचवाकर अपने खुद के व्यक्तिगत डाक टिकटों का ऑर्डर दे पाएँगे।

व्यक्तिगत टिकटों का उद्देश्य अपने प्रियजनों को सम्मानित करना, किसी अविस्मरणीय पल को अपने मित्रों और संबंधियों में बाँटना के लिए होता है। बहुत से लोग अपनी खुशी और शौक के लिए भी व्यक्तिगत डाक टिकट बनवाते हैं।

संदर्भ : Personalised Stamps of India, GPA News, Vol 6, Jan-Feb. 2003, (अशोककुमार बायेंवाला)

सौजन्य: श्री अशोककुमार बायेंवाला, श्री श्रीकांत परीख, श्री वराद ढाकी, श्रीमती जीवन ज्योति।




निजी टिकटों के बारे में पढ़ने के बाद मुझे विश्वास है की आप यहां दिखाये गये कार्टून में वर्णित चेहरों के निजी डाक टिकट ज़रुर देखने कि उम्मीद रखेंगे ।

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कार्टूनिस्ट: कीर्तीश भट्ट, इंदौर (दैनिक समाचारपत्र "नई दुनिया" के कार्टूनिस्ट)

महाराजा विजयसिंहजी की एप्सम डर्बी जीत के 75 वर्ष के अवसर पर राजपीपला राज्य के तत्कालीन शाही परिवार द्वारा विशेष आवरण के विमोचन समारोह का आयोजन 6 जून 2009 को विजय पैलेस, राजपीपला में किया गया । विशेष आवरण का विमोचन वड़ोदरा क्षेत्र के पोस्ट मास्टर जनरल श्री अरविंद कुमार जोशी द्वारा शाही परिवार के सदस्यों, भारतीय डाक विभाग के अधिकारी और मेहमानों की उपस्थिति में किया गया । आपका यह ब्लोगर मित्र एवं फिलेटेलिस्ट प्रशांत पंड्या भी इस् अवसर पर मौजूद था ।

विशेष आवरण (Special Cover) पर पहली तस्वीर में महाराजा विजयसिंह्जी और उनके अश्व विंडसर लेड को और दूसरी तस्वीर में डर्बी जीत के बाद महाराजा विजयसिंहजी को अपने अश्व विंडसर लेड और उनके जॉकी के साथ प्रस्थान करते हुए दर्शाया गया है । विशेष आवरण की डिजाईन अहमदाबाद के हमारे मित्र सपन ज़वेरी ने तैयार की है।

विशेष रद्दीकरण (Special Cancellation) का डिजाईन विंडसर लेड की डर्बी जीत की चित्रकारी और राजपीपला राज्य के राज्य चिह्न के ऊपर आधारित है जिसकी डिजाईन प्रशांत पंड्या ने तैयार की है।

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पहली तस्वीर में वड़ोदरा क्षेत्र के पोस्ट मास्टर जनरल श्री अरविंद कुमार जोषी विशेष (Special Cover) पर विशेष रद्दीकरण (Special Cancellation) की मुहर लगाते हुए | पोस्ट मास्टर जनरल श्री जोषी के दाहिने ओर महाराजा विजय सिंहजी के पोते श्री इंद्र विक्रम सिंहजी और बाईं तरफ फिलेटेलिस्ट श्री प्रशांत पंड्या और महाराजा विजय सिंहजी के प्रपौत्र श्री मानवेन्द्र सिंहजी |

दूसरी तस्वीर में पोस्ट मास्टर जनरल श्री जोशी मेहमानों को विशेष कवर दिखाते हुए और साथ में श्री इंद्र विक्रम सिंहजी और प्रशांत पंड्या |

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पहली तस्वीर में बड़ौदा डाक क्षेत्र के डाक सेवा निदेशक श्री एम्। संपत, महाराजा विजय सिंहजी के पोते महाराणा श्री रघुबीर सिंहजी और पोस्ट मास्टर जनरल श्री जोषी |

इस विशेष आवरण के विमोचन समारोह के दौरान राजपीपला के शाही परिवार द्वारा फिलेटेलिस्ट श्री प्रशांत पंड्या को महाराजा विजय सिंहजी के विंडसर लेड के साथ की पेंटिंग की प्रस्तुति द्वारा सम्मानित किया गया |

अन्य समाचार के लिंक्स

Rajpipla horse won history for India (DNA)

Royal tribute marks 75th anniversary of India's only win at English derby


Derby Victory Celebrations at Rajpipla

Platinum Jubilee Celebrations of Derby Victory of Maharaja of Rajpipla

Maharaja Vijaysinhji Scripted History 75 Years Ago

Rajpipla horse won history for India

Release of Special Cover to commemorate Platinum Jubilee of Epsom Derby Triumph of Maharaja Vijaysinhji of Rajpipla (1934-2009)

राजपीपला
राज्य के महाराजा लेफ्टिनेंट कर्नल विजयसिंहजी छत्रसिंहजी का जन्म 1890 में नांदोद (राजपीपला/Rajpipla) में हुआ था और उन्होंने राजकुमार कॉलेज, राजकोट और इम्पीरियल कैडेट कोर, देहरादून से शिक्षा प्राप्त की थी ।


महाराजा विजयसिंहजी घुड़सवारी में गहरी दिलचस्पी रखते थे । उन्होंने अपने अश्वों के साथ 1919 में भारतीय डर्बी (Indian Derby) (टिपस्टर/Tipster), 1926 में आयरीश डर्बी Irish Derby (एम्बारगो/Embargo), 1927 में ग्रान्ड प्रिक्स (Grand Prix) (एम्बारगो/Embargo) और 1934 में एप्सम डर्बी (Epsom Derby) (विंडसर लेड/Windsor Lad) जैसी घुड़सवारी प्रतीयोगीताएं जीती है

एप्सम डर्बी को दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित घुडदौड़ प्रतियोगिता माना जाता है जिसकी शुरुआत 1780 में हुई थी । यह प्रतियोगिता का आयोजन हर साल जून मास के पहले सप्ताहांत में एप्सम डाउन्स रेसकोर्स (Epsom Downs Race Course), एप्सम, इंग्लैंड में किया जाता है ।

एप्सम डर्बी जीतना एक ज़बरदस्त उपलब्धि है । एप्सम डर्बी जीतना और विश्व कप (World Cup) या विंबलडन (Wimbledon) जीतना एक समान बात है ।

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1780 से आज तक एप्सम डर्बी जीतने वालों में महाराजा विजयसिंहजी ही एकमात्र भारतीय है जिनके अश्व विंडसर लेड ने 6 जून 1934 को एप्सम डर्बी दौड़ जीता था । आज तक अन्य कोइ भारतीय व्यक्ति को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है ।

महाराजा विजयसिंहजी पहले गोहिल शासक थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के तुरंत बाद अपने राज्य राजपीपला को 10 जून 1948 को भारतीय लोकतंत्र के हवाले किया था ।

प्रिय पाठकों, राजपीपला नगर मेरा अपना नगर है जहाँ मैंने अपना बचपन बिताया है । राजपीपला को अक्सर मिनी कश्मीर (Mini Kashmir) या भारत के स्विस (Switzerland of India) के रुप में जाना जाता है ।

राजपीपला राज्य उज्जैन (Ujjain) के राजा के पुत्र चोकाराना द्वारा AD 1470 में जुना राज (Juna Raj) नामक जगह (पुराना राजपीपला) पर स्थापित किया गया था । बाद में राजधानी को नांदोद में स्थानांतरित किया गया था बाद में 1947 में उसे राजपीपला नाम दिया गया था ।

1860 में राजपीपला का शासन महाराजा गंभीरसिंहजी (Gambhir Sinhji) ने संभाला और उन्हीं के शासनकाल के दौरान राजपीपला राज्य में जनता के लिये डाक सेवा (Postal Service) की शुरुआत की गई थी | राजपीपला राज्य के दुर्लभ डाक टिकट (Postage Stamps) और डाक स्टेशनरी (Postal Stationery) की वजह से टिकट संग्रह (Philately) की दुनिया में राजपीपला राज्य की एक विशिष्ट ख्याति है |

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राजपीपला राज्य के डाक टिकट (Postage Stamps of Rajpipla State)

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राज्य के डाक टिकटों के रंगीन परीक्षण के नमूने (Specimens/Colour Trials of Rajpipla State's Postage Stamps)

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Postage Stamp of Rajpipla on cover

महाराजा विजयसिंहजी की एप्सम डर्बी जीत के 75 वर्ष के अवसर पर राजपीपला राज्य के राज परिवार द्वारा एक विशेष आवरण का विमोचन 6 जून 2009 को राजपीपला में किया जाएगा ।

इस वर्ष एप्सम डर्बी का आयोजन भी 5 और 6 जून 2009 को एप्सम डाउन्स रेसकोर्स, एप्सम, इंग्लैंड में किया जा रहा है ।

महाराजा विजयसिंहजी की एप्सम डर्बी जीत के 75 वर्ष के अवसर पर महाराजा विजयसिंहजी को यह एक फिलेटेलिक श्रद्धांजलि (Philatelic Tribute) है ।

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मातृभूमि के रक्षक (Guards of Motherland)



सशस्त्र बल (Armed Forces)

देश के सशस्त्र बलों सरकार द्वारा प्रायोजित संगठन है । सशस्त्र बल देश का बाह्य और आंतरिक हमलों से रक्षा करते है । भारत के राष्ट्रपति (President of India) को भारतीय सशस्त्र बलों (Indian Armed Forces) का कमांडर इन चीफ़ (Commander-in-Chief ) माना जाता है ।

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भारतीय थल सेना (Indian Military Force)

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भारतीय थल सेना भारत की सशस्त्र सेनाओं की सबसे बड़ी शाखा है और इसका प्राथमिक उद्देश्य बाहरी आक्रमण से भारत की भूमि और सीमाओं की रक्षा करना, देश की भीतरी शांति और सुरक्षा बनाए रखना है ।

भारतीय वायु सेना (Indian Air Force)

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भारतीय वायु सेना भारत की सशस्त्र सेनाओं की हवाई शाखा है। भारतीय वायु सेना की प्राथमिक ज़िम्मेदारी भारतीय हवाई क्षेत्र की रक्षा, शांति और संघर्ष के दौरान हवाई युद्ध का संचालन करना है। स्वतंत्रता के बाद से भारतीय वायु सेना को पाकिस्तान और चीन के साथ के साथ के संघर्ष में शामिल किया गया था ।

1961 में भारतीय वायु सेना ने गोवा की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । युद्ध के अलावा भारतीय वायु सेना प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत और बचाव कार्य का भी संचालन करती है।

भारतीय नौसेना (Indian Navy)

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भारतीय नौसेना भारत की सशस्त्र सेनाओं की नौसेना शाखा है। वर्तमान में भारतीय नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी नौसेनाओ में पांचवें स्थान पर है । हाल में भारतीय नौसेना में करीब 5000 नौसैनिक उड्डयन शाखा के सदस्यों और 2000 मरीन कमांडो के सहित 55000 सक्रिय नौसैनिक शामिल है। नौसेना का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय समुद्री सीमाओ को सुरक्षित करने का है ।

नौसेना का उपयोग संयुक्त अभ्यासों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बढ़ाने के लिए, राहत कार्यो में, बंदरगाह यात्राओं और मानवीय मिशन के लिये भी होता है

भारतीय सेना का प्रथम कमांडर इन चीफ़ (First Commander-in-Chief of the Indian Military)

kmcariappa फ़ील्ड मार्शल के.एम. करिअप्पा (Field Marshall K. M. Kariappa)

फ़ील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पाने 1947 के भारत - पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया था ।

1949 में उन्हें भारतीय सेना के प्रथम कमांडर इन चीफ़ नियुक्त किया गया था । भारतीयसैन्य अधिकारियों में फ़ील्ड मार्शल का सर्वोच्च पद धारण करने वाले सिर्फ दोअधिकारियोंमें से वह एक है ।

फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (Field Marshal Manekshaw)

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फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ एक भारतीय सेना के अधिकारी थे जिन्होंने भारतीय सेना की लगभग चार दशकों तक सेवा की । 03 अप्रैल 1914 को अमृतसर, पंजाब में जन्मे सैम मानेकशॉ ने भारतीय सेना का कार्य भार आंठ्वे चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ के रूप में 07 जून 1969 को ग्रहण किया था ।

1971 के भारत - पाकिस्तान युद्ध के विजय का श्रेय फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को जाता है । फ़ील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा के बाद सैम मानेकशॉ को भारतीय सेना के सर्वोच्च पद 'फिल्ड मार्शल' से सम्मानित किया गया है ।


punjabregiment पंजाब रेजिमेंट (The Punjab Regiment)

पंजाब रेजिमेंट भारतीय सेना में सबसे पुराना सदस्य है। 1761 में पहली बटालियनको मद्रास इन्फैंट्री के रूप में Trichinopoly भेजा गया था।


15Punjab_patiala15 पंजाब (पटियाला) (15 Punjab Patiala)

15 पंजाब (पटियाला) भारतीय सेना का सबसे पुराना बटालियन है जिसे पटियाला राज्य के संस्थापक बाबा आला सिंह (Baba Alla Singh) ने 13 अप्रैल 1705 को स्थापित किया था । 15 पंजाब (पटियाला) एक मात्र शत प्रतिशत सिख सैनिकों से बनी रेजिमेंट की बटालियन है । पंजाब रेजिमेंट की अन्य सभी बटालियने डोगरा और सिख सैनिकों से बनी मिश्रित बटालियने है ।


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14 पंजाब नाभा अकाल (14 Punjab Nabha Akal)

जुलाई 1995 में भारतीय सेना की 14 पंजाब नाभा अकाल की एक बटालियन को संयुक्त राष्ट्र PKO के लिए अंगोला में संयुक्त राष्ट्र अंगोला सत्यापन मिशन - III (UNAVEM-III) के लिये भेजा गया था ।


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सिख रेजिमेंट की तीसरी बटालियन (Third Battalion of the Sikh Regiment)

सिख रेजिमेंट भारतीय सेना का सबसे ज्यादा सजाया गया रेजीमेंट है । वर्तमान में सिख रेजिमेंटल सेंटर रामगढ़ छावनी में स्थित है ।

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चौथे गोरखा रायफ़ल्स की पहली बटालियन (First Battalion of the Fourth Gorkha Rifles)

4 गोरखा रायफ़ल्स भारतीय सेना की थल सेना की रेजिमेंट है । मूलतः 1857 में इसे ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्से के रूप में स्थापित किया गया था और भारत की आज़ादी के बाद उसे भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में हस्तांतरित किया गया था ।

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3 कैवलरी (3rd Cavalry)

3 कैवलरी ब्रिटिश भारतीय सेना में एक नियमित रूप में कैवलरी रेजिमेंट है जिसका गठन 1922 में 5 वीं और 8 वीं कैवलरी रेजिमेंटों से किया गया था । 3 कैवलरी ने उत्तर पश्चिमी सीमा पर प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेवांएँ दी थी ।


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आईएनएस नीलगिरी (भारतीय नौसेना पोत) (INS Nilgiri)

आई एन एस नीलगिरी भारतीय नौसेना का सबसे पहला स्वदेश में निर्मित फ्रिगेट था जिसे 24 वर्षों की शानदारसेवा के बाद 1996 में डि-कमीशन (Decommission) किया गया था ।

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आईएनएस तारागिरी (INS Taragiri)

भारतीय नौसेना पोत आई एन एस तारागिरी को जुलाई 1994 में एक गंभीर आग गई थी लेकिन 1995 उसकी मरम्मत की गई थी और वापस सक्रिय सेवा में लिया गया था ।


insvikrantआईएनएस विक्रांत (INS Vikrant)

आई एन एस विक्रांत भारत के 6 बेहतरीन विमान वाहको में से एक है । जहाज आई एन एसविक्रांत 16 फरवरी 1961 को कमीशन किया गया था । आई एन एस विक्रांत सैनिकों, ASW विमानों और हेलिकॉप्टरों के साथ हर तरह के खतरे से देश को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है ।

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आईएनएस दिल्ली (INS Delhi)

आई एन एस दिल्ली देश का नया युद्धपोत है जो भारतीय नौसेना के पुराने जहाज आई एन एस दिल्ली के नाम से ही 15 नवंबर 1997 को कमिशन किया गया है ।

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आईएनएस तरंगिनी (INS Tarangini)

तरंगिनी भारतीय नौसेना का एक मात्र प्रशिक्षण पोत है । तरंगिनी नाम हिन्दी शब्द 'तरंग' तरंगों से आया है । तरंगिनी का कमीशन मुख्यतः कैडेटों के प्रशिक्षण के लिए 11 नवंबर 1997 को किया गया है ।

sqd1 भारतीय वायु सेना का 1 स्क्वाड्रन 'टाइगर्स' (NO.1 Squadron of the Indian Air Force)

1 स्क्वाड्रन का प्रारंभिक इतिहास भारतीय वायु सेना के इतिहास का पर्याय है । 1 स्क्वाड्रन का गठन भारतीय वायु सेना के प्रशिक्षित पायलटों की पहली खेप प्राप्त होने के दिन पर किया गया था ।

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16 स्क्वाड्रन भारतीय वायु सेना (16th Squadron Indian Air Force)

16 स्क्वाड्रन भारतीय वायु सेना की पुरानी स्क्वाड्रन में से एक है | 16 स्क्वाड्रन कोभारतीय वायु सेना के कोबरा के रूप में जाना जाता है।


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भारत के वीर जवान (Courageous Soldiers of India) और
वीरता पुरस्कार विजेता (Gallantry Award Winners)

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ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajendra Singh)

rsingh स्वतंत्र भारत की वीरता पुरस्कार का पहला प्राप्त कर्ता (First recipient of gallantry award of independent India)

अक्टूबर 1947 में श्रीनगर में पाकिस्तानी सेना के साथ संघर्ष में दुश्मन द्वारा ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को उनके दाहिने हाथ पर मशीन गन से गोली मारी गयी थी । उनहोंने सेना के दूसरे सदस्यों को ख़तरे में न डालते हुए उन्हें वहीं छोड़कर आगे बढ़ने के लिए आदेश दिया था । संभवतः वह दुश्मन के हाथों में आ गये थे और उनका शव भी बरामद नहीं हुआ था । लेकिन उनके बलिदान ने सेना के जवानों को श्रीनगर की सुरक्षा सुनिश्चित करने की प्रेरणा दी । ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को राष्ट्र द्वारा महावीर चक्र के साथ सम्मानित किया गया है ।

somnathsharma मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma)

1923 में जन्मे मेजर सोमनाथ शर्मा 1942 में 19 वीं हैदराबाद रेजिमेंट में कमीशन किये गये थे और वे 8 वीं बटालियन में तैनात थे । मेजर शर्मा सैनिक का गुण का एक उदाहरण शायद ही कभी भारतीय सेना के इतिहास में बराबरी निर्धारित किया है । उनके प्रेरणादायी नेतृत्व, निडरता, साहस, अतुलनीय दृढ़ता और आत्म बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पुरस्कार प्रथम परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था ।

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Lance Naik Karam Singhलांस नायक करम सिंह (Lance Naik Karam Singh MM)

लांस नायक करम सिंह एम एम, एक सिख जवान थे जिनका जन्म 15 सितम्बर 1915 को पंजाब के बरनाला में हुआ था । उन्हें 1948 में भारत के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार ‘परम वीर चक्र’ (Param Vir Chakra) से सम्मानित किया गया था । करम सिंह ने भारतीय सेना से मानद कैप्टन के रूपमें सेवा निवृति ली थी ।

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कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद (Company Quarter Master Havildar Abdul Hamid)

कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश में हुआ था वह 27 दिसंबर 1954 के दिन 4 ग्रेनेडियर्स में भर्ती हुए थे । अपनी सेना सेवा के दौरान उन्हें समर सेवा पदक, रक्षा पदक और सैन्य सेवा पदक अर्जित किये गये है ।

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लांस नायक अल्बर्ट इक्का (Lance Naik Albert Ekka)

अल्बर्ट इक्का का जन्म 27 दिसंबर 1942 को बिहार के रांची जिले (अब झारखंड) में हुआ था । अल्बर्ट 20 वर्ष की आयु में 27 दिसंबर 1962 को भारतीय सेना के 14 गार्ड्स में भर्ती हुए थे । 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान हिल्ली (Hilli) के युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई । उन्हें वीरता के लिए मरणोपरांत परम वीर चक्र प्रदान किया गया था ।

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फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जित सिंह सेखों (Flying Officer Nirmal Jit Singh Sekhon)

फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जित सिंह सेखों भारतीय वायुसेना के एक अधिकारी थे । वह भारतीयवायु सेना के परम वीर चक्र से सम्मानित एक मात्र अधिकारी है । उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र प्रदान किया गया था । सेखों को यह सम्मान 1971 के भारत और पाक युद्ध के दौरान श्रीनगर एयर बेस को एक घातक हवाई हमले के दौरान अकेले ही रक्षा करने के लिये प्राप्त हुआ है ।

Mullaकप्तान महेन्द्र नाथ मुल्ला (Captain Mahendra Nath Mulla)

15 मई 1926 को जन्मे कप्तान महेन्द्र नाथ मुल्ला को भारतीय नौसेना में 01 मई 1948 को कमीशन किया गया था । 1971 के भारत और पाक युद्ध के दौरान कप्तान महेन्द्र नाथ मुल्ला दो जहाज़ों के एक कार्य दल के कमान थे । इस कार्य दल को उत्तरी अरब सागर में दुश्मन की पनडुब्बियों को नष्ट करने का कार्य सौंपा गया था ।

वीरता, साहस और भारी मुसीबतों का सामना करने की एक लंबी परंपरा है भारतीय सशस्त्र बलों में सालों से चली आ रही है । हमारे देश की अखंडता की रक्षा करने वाले हमारे भारतीय सशस्त्र बलों के जवानों को हम सलाम करते है ।


सुरक्षा की दूसरी पंक्ति (Second line of Defence)

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प्रादेशिक सेना (Territorial Army)

प्रादेशिक सेना (Territorial Army) एक स्वैच्छिक अंशकालिक असैनिक बल है जो देश की रक्षा में एक उपयोगी भूमिका निभाती है ।यह नागरिकों के लिए सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए और आवश्यकता के अवसर पर देश को नियमित सेना की सहायता के लिये एक आरक्षित बल प्रदान करता है ।

crpf केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (The Central Reserve Police Force)

केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल 27 July 1939 को एक पुलिस बल के रुप में अस्तित्व में आया और सीआरपीएफ अधिनियम के अधिनियमन पर 28 दिसम्बर 1949 को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल बना । यह सेना के 191 बटालियनों का एक बड़ा संगठन है।

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भारतीय पुलिस सेवा (Indian Police Service)

भारतीय पुलिस सेवा जो भारतीय पुलिस या आईपीएस के रुप में जानी जाती है । स्वतंत्रता प्राप्त होने के एक वर्ष के बाद 1948 में इम्पीरियल पुलिस (आईपी) को भारतीय पुलिस सेवा में बदल दिया गया था ।

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भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard)

भारतीय तटरक्षक बल भारत की नौसेना का एक हिस्सा है । यह 18 अगस्त 1979 को तटरक्षक अधिनियम के अनुसार एक स्वतंत्र इकाई के रूप में बनाया गया था जिसका मुख्य उद्देश्य भारत के विशाल समुद्र तट की रक्षा करना है ।

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